वाख टेस्ट पेपर 01
सीबीएसई कक्षा 9 हिंदी ए
खंड ख – व्यावहारिक व्याकरण
प्रश्न
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह !
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई?
- कवयित्री के अनुसार, वह पद्यांश में किस मार्ग पर न चलने की बात कर रही है?
- भक्ति के सरल मार्ग पर नहीं चलने की
- प्रेम के सरल मार्ग पर चलने की
- अनुचित कार्यों के मार्ग में चलने की
- इनमें से कोई नहीं
- ‘सुषुम-सेतु’ से कवयित्री का क्या तात्पर्य है?
- ईश्वर को प्राप्त कराने के साधन से
- सुषुम्ना नाड़ी की साधना से
- सुंदर पुल से पार न जाने से
- योग-साधना न करने से
- कवयित्री की चिता क्या है?
- वह ईश्वर को पाने का मार्ग दूँढना चाहती है
- वह योग-साधना करना चाहती है
- उसे घर जाने के लिए कोई मार्ग नहीं मिला है
- उसके पास ईश्वर को देने के लिए कुछ नहीं है
- कवयित्री के अनुसार, उसके पास क्या नहीं था?
- भक्ति की सहज भावना
- माझी को देने के लिए पैसे
- कर्मकांड या बाह्य आडंबर
- हठ योग की साधना
- पद्यांश में ‘माझी’ किसका प्रतीक है?
- भक्ति का
- प्रेम का
- ईश्वर का
- मल्लाह का
- खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
- भोग विलास से दूर होने का घमंड होना
- घमंड होना
- अपने को दूसरों से भिन्न समझना
- स्वयं को महात्मा मानने लगना
- ललद्यद को किस नाम से ‘नहीं’ जाना जाता?
- ललारिफा
- लंकेश्वरी
- लल्लेश्वरी
- ललयोगेश्वरी
- वाख काव्य के संदर्भ में कवयित्री ने ‘सर्वत्र’ के लिए कौन-सा शब्द प्रयोग किया है?
- स्थल-थल
- जल-थल
- नभ-थल
- थल-थल
- वाख काव्य में किन बंधनों से मुक्ति की बात की गई है?
- इनमें से कोई नहीं
- सामाजिक
- पारिवारिक
- सांसारिक
- वाख काव्य के संदर्भ में कवयित्री ने ‘उतराई’ किसे माना है?
- चंचलता को
- सद्कर्मों को
- क्रोध और मोह को
- ईर्ष्या-द्वेष को
- हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है- आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?
- कच्चे सकोरे का क्या अर्थ है? कवयित्री ने अपने प्रयासों के लिए इसका प्रयोग क्यों किया हैं?
- बंद द्वारा की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?
- वाख कविता के आधार में भाव स्पष्ट कीजिए-
खा-खाकर कुछ पाए नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी। - वाख कविता के आधार में भाव स्पष्ट कीजिए- जेब टटोली कौड़ी न पाई।
समाधान
- (a) भक्ति के सरल मार्ग पर नहीं चलने की
- (b) सुषुम्ना नाड़ी की साधना से
- (d) उसके पास ईश्वर को देने के लिए कुछ नहीं है
- (a) भक्ति की सहज भावना
- (c) ईश्वर का
- (d) स्वयं को महात्मा मानने लगना
- (b) लंकेश्वरी
- (d) थल-थल
- (d) सांसारिक
- (b) सङ्कर्मों को
- हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है-समाज में भेदभाव के कारण देश और समाज को बहुत हानि हो रही है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
- समाज में जाति और धर्म के नाम पर बँटवारा होने से एक वर्ग से दूसरे वर्ग के बीच मतभेद पैदा हो गए हैं।
- इस कारण समाज में उच्च-वर्ग, निम्न वर्ग को हीन दृष्टि से देखता है।
- त्योहारों के अवसर पर अनायास झगड़े होते रहते हैं।
- आपसी भेदभाव के कारण एक वर्ग और दूसरे वर्ग में संदेह और अविश्वास बढ़ता जा रहा है।
- हमारी सहिष्णुता समाप्त होती जा रही है।
- आक्रोश बढ़ता जा रहा है जिसका परिणाम उग्रवाद, अलगाववाद के रूप में हमारे सामने आ रहा है।
- कच्चे सकोरे का अर्थ है मिट्टी के बने छोटे-छोटे कच्चे पात्र। कवयित्री ने इसका प्रयोग इसलिए किया है, क्योंकि जिस प्रकार इन कच्चे बर्तनों में पानी रखने पर वह टपक कर बह जाता है उसी प्रकार कवयित्री को ईश्वर को पाने के लिए जो प्रयास कर रही हैं वह भी व्यर्थ हो रहे हैं और वह ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पा रही हैं।
- बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री ने निम्नलिखित उपाय अपनाने का सुझाव दिया है-
- मनुष्य को न तो सांसारिक विषयों में अधिक लिप्त रहना चाहिए और न इनसे विमुख होना चाहिए। उसे माध्यम मार्ग अपनाकर अपना जीवन पूर्ण संयम से जीना चाहिए।
- मनुष्य को सभी प्राणियों को समान भाव से देखना चाहिए।
- ईश्वर प्रत्येक स्थान पर है इसलिए मनुष्य को उसकी सच्ची भक्ति करनी चाहिए।
- भाव- इन पंक्तियों में कवयित्री ने मनुष्य को सांसारिक भोग तथा त्याग के बीच का मध्यम मार्ग अपनाने की सलाह दी है। उनका मानना है कि विषय-वासनाओं में बंधने से मनुष्य को कुछ नहीं मिलने वाला और इनसे विमुख होकर त्याग की भावना को अपनाने से मनुष्य अहंकारी बन जाएगा इसलिए उसे माध्यम मार्ग अपनाना चाहिए।
- भाव – कवयित्री ने अपना सारा जीवन सांसारिक वासनाओं में फंसकर व्यर्थ गँवा दिया। जीवन के अंतिम समय में जब उन्होंने पीछे देखा तो ईश्वर को देने के लिए उनके पास कोई सद्कर्म ही नहीं थे।