लघु कथा लेखन – टेस्ट पेपर 01 | सीबीएसई कक्षा 9 हिंदी ए

लघु कथा लेखन – टेस्ट पेपर 01

सीबीएसई कक्षा 9 हिंदी ए

प्रश्न

  1. ‘मैं हूँ गोरैया’ विषय पर लगभग 100-120 शब्दों में एक लघुकथा लिखिए।
  2. ‘लॉकडाउन में गरीब’ विषय पर लगभग 100-120 शब्दों में एक लघुकथा लिखिए।
  3. ‘कंप्यूटर पर काम करते’ विषय पर लगभग 100-120 शब्दों में एक लघुकथा लिखिए।
  4. ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ विषय पर लगभग 100-120 शब्दों में एक लघुकथा लिखिए।

समाधान

  1. मैं हूँ गोरैया

    मैं गोरैया, आज आपको अपनी कहानी सुनाती हूँ। वही गोरैया, जो कभी सवेरे सबके घरों के आँगन में आती थी सबको नींद से जगा देती थी। सामने के घर में एक छोटा-सा बच्चा मेरा घनिष्ठ मित्र बन गया था। घर जाकर दाना खाना और पानी पीकर कलरव करने उसके साथ खेलने में बड़ा आनंद आता था। एक दिन वह बीमार पड़ गया। उसे न देखकर मेरा मन नही लगा और मैं उदास हो गई। अब मैंने भी न तो दाना खाया और न ही पानी पिया। मेरे मित्र ने जब मुझे इस तरह देखा तो उसने मुझे खाना खिलाने का बहुत प्रयास किया, पर मेरा मन उदास था। वह बहुत समझदार था उसने मुझे बीमार होने की बात समझाई। अब मैं रोज मेरे मित्र के घर के सामने लगे पेड़ पर जाती। मेरा मित्र मुझे देख खुश होता। मेरे दोस्त की माँ मेरे लिए दाना-पानी रखती। धीरे-धीरे मेरा दोस्त ठीक हो गया। अब हमारा साथ फिर से शुरू हो गया और हम खेलने लगे। अब तो हम दोनों और भी घनिष्ठ मित्र बन गए थे।

  2. लॉकडाउन में गरीब

    यह उस समय की बात है जब चारों ओर कोरोना की बीमारी फैली थी। सभी लोगों को अपने घरों में रहने की सलाह दी गई थी। जो जहाँ था उसे वहीं रहने का आदेश दिया गया था। उस समय का सबसे बड़ा शिकार गरीब लोग ही बने। वे रोज मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भरते थे। परंतु लॉकडाउन होने के कारण उनकी मजदूरी बंद हो गई। कुछ दिनों तक तो उन्होंने जैसे-तैसे अपने घर में रखा सामान खाया, पर जब वह भी खत्म हो गया तो वे लोग भूख से व्याकुल हो गए। एक दिन वे भूख से इतने बेहाल हो गए कि वे शहर से अपने गाँव की ओर निकल पड़े। न तो उनके पास पैसा था और न ही कोई साधन। वे बस पैदल चलते गए, पर एक दिन भूख ने उन्हें इस कदर जकड़ा की उनकी हिम्मत ने भी जवाब दे दिया। तभी एक दयालु व्यक्ति उनके पास से गुजरा और उसने उन लोगों को खाना खिलाया और उनके गाँव तक पहुँचने में भी मदद की। अब उन्होंने उस दयालु व्यक्ति का धन्यवाद किया और उस दयालु व्यक्ति ने हमेशा मदद करने का भरोसा दिया।

  3. कंप्यूटर पर काम करते

    कंप्यूटर पर काम करते-करते मेरे मन में ख्याल आया कि काश मैं भी कंप्यूटर होता। लगा जैसे किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो और मैं बन गया कंप्यूटर। अब तो सब मुझे हाथों-हाथ रखने लगे। सूर्योदय से पहले ही मेरा दिन शुरू हो जाता और देर रात तक मुझ पर काम किया जाता। अब मुझे लगा कि कंप्यूटर बनकर मैंने गलती कर दी। मेरा दिमाग हर पल चलता रहता और की-बोर्ड पर तो लगता जैसे हथौड़े पड़ रहे हों। अब तो मुझे पल भर का भी आराम नसीब नहीं था। थक गया मैं कंप्यूटर बनकर। यह सोचते ही मैं अपने रूप में वापिस आ गया। अब मैंने सुकून की सांस ली।

  4. जैसी करनी वैसी भरनी

    ये उस समय की बात है जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था। मैं औसत वाला लड़का था। मेरी कक्षा में एक और लड़का था, जो पूरे स्कूल में अव्वल आता था। सारे शिक्षक भी उसकी तारीफ करते रहते थे। उसके प्रति मेरे मन में ईर्ष्या की भावना रहती थी। मैं ऐसे मौके की तलाश में रहता था, जब मैं उसे नीचा दिखा सकूँ। बहुत जल्द ही वो मौका मेरे सामने आ गया। हमारे स्कूल में एक परीक्षा का आयोजन हुआ, इसमें उत्तीर्ण होने वालों को सम्मानित किया जाता और आगे की पढ़ाई के लिए छात्रवृति मिलने वाली थी। मेरी चालाकी से उसके पास से नकल करने का कुछ सामान हमारे शिक्षक को मिल गया और उसे परीक्षा से बर्खास्त कर दिया गया। वहाँ पर तो मैं उत्तीर्ण हो गया, लेकिन बहुत जल्द ही मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। जब आगे की परीक्षा में मैं उत्तीर्ण नहीं हो पाया और मुझे उससे बाहर कर दिया गया। तब मुझे ये समझ में आ गया कि हम दूसरों के साथ जैसा करते हैं, हमारे साथ भी वैसा ही होता है।

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