रसखान – Notes

रसखान

Notes, Summary, सवैया, and Study Material

📑 Table of Contents

✍️ About the Author

रसखान (1548–1628) दिल्ली के पास जन्मे प्रसिद्ध कृष्णभक्त कवि थे। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था। कृष्णभक्ति में उनकी गहरी रुचि के कारण वे गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा लेकर ब्रजभूमि में बस गए। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं ‘सुजान रसखान’ और ‘प्रेमवाटिका’, जिनमें कृष्ण के प्रति उनकी अनुरक्ति और ब्रजभूमि की महिमा का सुन्दर वर्णन मिलता है। उनकी भाषा सरल, मार्मिक और भावपूर्ण है, और ब्रजभाषा के माधुर्य का उत्कृष्ट प्रयोग उनके काव्य में देखा जा सकता है।

📖 Summary

रसखान के काव्य में कृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति कवि की अनुरक्ति प्रमुख है। उनके सवैयों में व्यक्त प्रेम भाव इस प्रकार है:

  • कवि ब्रजभूमि में जन्म लेने, पशु, पक्षी या पहाड़ बनकर वहां निवास करने की इच्छा व्यक्त करता है।
  • कवि ब्रज के वन, बाग और तालाब को देखकर कृष्ण के निकट होने का अनुभव करता है।
  • कवि कृष्ण की मुरली, मुस्कान और गोपियों के प्रति उनके प्रभाव का वर्णन करता है।
  • कवि अपनी भक्ति में संसारिक सुख-सुविधाओं की अनावश्यकता व्यक्त करता है।

📝 सवैया (Detailed)

सवैया 1:

मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वालन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरौ करौं, मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।

भाव: कवि अगले जन्म में भी ब्रज में रहकर कृष्ण की सेवा करना चाहता है। वह पशु, पक्षी या पहाड़ बनकर भी कृष्ण के निकट रहना चाहता है।


सवैया 2:

या लकुटी अरु कामरिय पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख, नंद की गाइ चराइ बिसारौं।
रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं।

भाव: कवि ब्रज के वन, बाग और तालाब की सुंदरता के लिए अपने सभी वैभव और सुख न्योछावर करने को तैयार है।


सवैया 3:

मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी, बन गोधन ग्वालिन संग फिरौंगी।
भावतो वोहि मेरो रसखान सों, तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी, अधरा न धरौंगी।

भाव: गोपियाँ कृष्ण के रूप की नकल करने को तैयार हैं, लेकिन मुरली को अपने होंठों पर नहीं रखेंगी।


सवैया 4:

काननि दै अँगुरी रहिबो, जबही मुरली धुन मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि, अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै।
टेरि कहौं सिगरे ब्रज-लोगनि, काल्हि कोई कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि, सँभारि न जैहै, न जैहै, न जैहै।

भाव: गोपियाँ कृष्ण की मुरली और मुस्कान के प्रभाव से विवश हो जाती हैं।

🌟 Themes

  • कवि का ब्रजभूमि और कृष्ण के प्रति प्रेम
  • साधारण जीवन में भक्ति और तन्मयता
  • गोपी-कृष्ण प्रेम और रूप-सौंदर्य का वर्णन
  • साधारण भाषा में गहन भावों की अभिव्यक्ति

📌 Important Question-Answers

Q1. कवि रसखान का ब्रजभूमि के प्रति प्रेम किन रूपों में प्रकट हुआ?
👉 अगले जन्म में मनुष्य, पशु, पक्षी और पहाड़ बनकर कृष्ण के निकट रहने की इच्छा।

Q2. कवि ब्रज के वन-बाग-तालाब क्यों देखना चाहता है?
👉 क्योंकि ये स्थान कृष्ण की लीलाओं के साक्षी हैं और इन्हें देखकर उन्हें कृष्ण की निकटता का अनुभव होता है।

Q3. कवि ने लकुटी और कामरिय पर सब कुछ न्योछावर क्यों करने को कहा?
👉 ये वस्तुएँ कृष्ण से जुड़ी हैं और इनके लिए संसार के सभी सुख और वैभव तुच्छ हैं।

Q4. चौथे सवैये में गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?
👉 कृष्ण की मुरली और मुस्कान के मोहक प्रभाव के कारण।

Q5. ‘कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं’ का भाव क्या है?
👉 ब्रज की प्राकृतिक सुंदरता और कृष्ण से जुड़ी जगहों के प्रति कवि का गहन प्रेम।

📚 Glossary / शब्द-संपदा

  • बसौ: बसना, रहना
  • कहा बस: वश में न होना
  • मंझारन: बीच में
  • गिरि: पहाड़
  • पुरंदर: इंद्र
  • कालिंदी: यमुना
  • कामरिय: कंबल
  • तड़ाग: तालाब
  • कलधौत के धाम: सोने-चाँदी के महल
  • करील: काँटेदार झाड़ी
  • वारौं: न्योछावर करना
  • भावतो: अच्छा लगना
  • अटा: कोठा, अटारिका
  • टेरि: पुकारकर बुलाना

✨ Quick Revision Points

  • Author: रसखान (1548–1628)
  • Main Works: सुजान रसखान, प्रेमवाटिका
  • Key Themes: कृष्ण भक्ति, ब्रजभूमि प्रेम, गोपी-कृष्ण प्रेम
  • Important Concepts: Eight Siddhis, Nine Nidhis, Savaiya structure
  • Message: भक्ति, अनुरक्ति और प्राकृतिक सौंदर्य की सराहना
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