अपठित काव्यांश – टेस्ट पेपर 01
सीबीएसई कक्षा 9 हिंदी ए
खंड क – अपठित बोध
अपठित काव्यांश – 1
साक्षी है इतिहास हमीं पहले जागे हैं,
जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं।
शत्रु हमारे कहाँ नहीं भय से भागे हैं
कायरता से कहाँ प्राण हमने त्यागे हैं?
हैं हमीं प्रकंपित कर चुके,
सुरपति तक का भी हुदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम गाओ भारत की विजया।
कहाँ प्रकाशित नहीं रहा है तेज हमारा,
दलित कर चुके शत्रु सदा हम पैरों द्वारा।
बतलाओ तुम कौन नहीं जो हमसे हारा,
पर शरणागत हुआ कहाँ, कब हमें न प्यारा।।
बस युद्ध-मात्र को छोड़कर, कहाँ नहीं हैं हम सदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम, गाओ भारत की विजय ।।
प्रश्न
- ‘हमीं पहले जागे हैं’ से क्या आशय है?
- इंद्र का हदय हम किस प्रकार प्रकंपित कर चुके हैं?
- हम कहाँ छोड़कर दया नहीं दिखाते हैं?
- विश्व को भारत की विजय का गुणगान करने के लिए क्यों कहा गया है?
- शरणागत में कौन-सा समास है?
समाधान
-
**उत्तर:** (b) ज्ञान की प्राप्ति सबसे पहले हमें ही हुई है
व्याख्या: ज्ञान की प्राप्ति सबसे पहले हमें ही हुई है। -
**उत्तर:** (d) वीरतापूर्वक
व्याख्या: वीरतापूर्वक -
**उत्तर:** (d) युद्ध को छोड़कर
व्याख्या: युद्ध को छोड़कर। -
**उत्तर:** (b) हम सदा विजयी रहे हैं
व्याख्या: हम सदा विजयी रहे हैं। -
**उत्तर:** (a) तत्युरुष
व्याख्या: तत्युरुष।
अपठित काव्यांश – 2
निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी-पिटी
हर बार बिखेरी गई किंतु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी।
आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़कर छल जाए।
सूरज दमके तो तप जाए रजनी ठुमके तो ढल जाए,
यो तो बच्चों की गुड़िया-सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या
आँधी आए तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल जाए,
फ़सलें उगती, फ़सलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है।
सौ बार बने सौ बार मिटे लेकिन मिट्टी अविनश्वर है।
प्रश्न
- सूरज के दमकने पर मिट्टी पर क्या असर पड़ता है?
- ‘यो तो बच्चों की गुड़िया सी’ में कौन-सा अलंकार है?
- मिट्टी कब ढल जाती है?
- कुम्हार को निर्मम क्यों कहा गया है?
- कवि ने मिट्टी को कैसा बताया है?
समाधान
-
**उत्तर:** (c) वह तपकर मज़बूत हो जाती है
व्याख्या: वह तपकर मज़बूत हो जाती है। -
**उत्तर:** (c) उपमा
व्याख्या: उपमा। -
**उत्तर:** (c) रात होने पर
व्याख्या: रात होने पर। -
**उत्तर:** (a) क्योंकि वह मिट्टी को कूटता – पीटता है
व्याख्या: क्योंकि वह मिट्टी को कूटता पीटता है। -
**उत्तर:** (d) अनश्वर
व्याख्या: अनश्वर।