मेरे संग की औरतें टेस्ट पेपर 01
सीबीएसई कक्षा 9 हिंदी ए
खंड ख – व्यावहारिक व्याकरण
प्रश्न
1. मेरे संग की औरतें पाठ के अनुसार लेखिका की नानी की आज़ादी के आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही? 2. लेखिका मृदुला गर्ग के मन में उसकी नानी, दादी, माँ, भाई-बहनों आदि की स्मृतियाँ हैं। इन्हीं रिश्तों से परिवार बनता है। परिवार के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए बताइए कि यह किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है? 3. लेखिका के व्यक्तित्व पर उसके परिवार के किस प्राणी का अधिक प्रभाव पड़ा? मेरे संग की औरतें पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। 4. मेरे संग की औरते पाठ में लेखिका ने बच्चों की शिक्षा के लिए स्वयं प्रयास किया है। बताइए कि बच्चों के लिए शिक्षा कितनी आवश्यक है और हमें उनकी शिक्षा के लिए क्या प्रयास करना चाहिए? 5. लेखिका की बहनें हीनभावना का शिकार नहीं हो पाईं, इसका क्या कारण था? मेरे संग की औरतें पाठ के आधार पर लिखिए। 6. मेरे संग की औरतें पाठ के आधार पर लिखिए कि जीवन में कैसे इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है?
- मेरे संग की औरतें पाठ के अनुसार लेखिका की नानी की आज़ादी के आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही?
- लेखिका मृदुला गर्ग के मन में उसकी नानी, दादी, माँ, भाई-बहनों आदि की स्मृतियाँ हैं। इन्हीं रिश्तों से परिवार बनता है। परिवार के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए बताइए कि यह किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है?
- लेखिका के व्यक्तित्व पर उसके परिवार के किस प्राणी का अधिक प्रभाव पड़ा? मेरे संग की औरतें पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
- मेरे संग की औरते पाठ में लेखिका ने बच्चों की शिक्षा के लिए स्वयं प्रयास किया है। बताइए कि बच्चों के लिए शिक्षा कितनी आवश्यक है और हमें उनकी शिक्षा के लिए क्या प्रयास करना चाहिए?
- लेखिका की बहनें हीनभावना का शिकार नहीं हो पाईं, इसका क्या कारण था? मेरे संग की औरतें पाठ के आधार पर लिखिए।
- मेरे संग की औरतें पाठ के आधार पर लिखिए कि जीवन में कैसे इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है?
समाधान
- यूँ तो लेखिका की नानी का आज़ादी के आंदोलन में कोई प्रत्यक्ष योगदान न था क्योंकि वे अनपढ़, परंपरागत, परदानशीं, दूसरों की जिंदगी में दखल न देने वाली महिला थीं, पर कम उम्र में ही अपनी मृत्यु को निकट जान वे अपनी पंद्रह वर्षीय बेटी (लेखिका की माँ) के लिए चिंतित हो उठीं। उन्होंने अपने पति से कहा कि वे परदे का लिहाज़ छोड़कर उनके स्वतंत्रता सेनानी मित्र प्यारेलाल शर्मा से मिलना चाहती हैं तथा उनसे मिलकर कहा कि उनकी बेटी का रिश्ता वे स्वयं तय करें। जिस वर से उनकी बेटी की शादी हो वह भी उन्हीं (शर्मा जी) जैसा ही आज़ादी का सिपाही हो। इस तरह उनकी स्वतंत्रता आंदोलन में परोक्ष भागीदारी रही।
- लेखिका ने प्रस्तुत पाठ में अपने परिवार का वर्णन करते हुए जिन रिश्तों एवं उनसे जुड़ी भावनाओं का उल्लेख किया है, वास्तव में उन्हीं से परिवार की रचना होती है। परिवार एक ऐसी सामाजिक इकाई है, जिसके परिवेश में पल-बढ़ कर मनुष्य प्राथमिक रूप से सामाजिकता तथा व्यक्तिगत आचार-विचार एवं कार्य-व्यवहार की शिक्षा प्राप्त करता है। यह कहना गलत न होगा कि परिवार हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं व्यक्तिगत जीवन की भी सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाए तो रामायण, महाभारत आदि में वर्णित घटनाओं के केंद्र में परिवार ही है। समाजशास्त्रियों ने समाज को परिभाषित करते हुए उसे ‘सामाजिक संबंधों का जाल’ कहा है। यदि यह कथन सत्य है, तो यह मानने में कोई कठिनाई नहीं कि उस जाल को बनाने का सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र परिवार ही है। समाज की रचना का आरंभ परिवार के समूहों से ही होता है।
- लेखिका के व्यक्तित्व पर अपने परिवार के लोगों में से सर्वाधिक प्रभाव अपनी नानी के व्यक्तित्व का पड़ा। नानी को लेखिका ने कभी नहीं देखा था, सिर्फ़ सुना भर था कि उसकी नानी ने किस प्रकार विलायती ढंग से जीवन यापन करने वाले बैरिस्टर पति के साथ बिना किसी शिकायत के जीवन बिताया था, लेकिन मरने से पहले अचानक किस प्रकार पर्दे का लिहाज़ छोड़ पति के मित्र को बुलाया और उनसे यह वचन लिया था कि वे उनकी पुत्री का विवाह किसी स्वतंत्रता सेनानी से ही करवाएँगे। नानी की राष्ट्र-चेतना और भारतीयता का लेखिका के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा। लेखिका अपनी नानी के विचारों और सस्कारों से अत्यधिक प्रभावित हुई थी।
- ‘मेरे संग की औरतें’ पाठ में लेखिका ने बच्चों की शिक्षा के लिए स्वयं सराहनीय प्रयास किया है। ‘शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है’ संबंधी धारणा में विश्वास करने वाली लेखिका ने कर्नाटक के छोटे-से कस्बे बागलकोट में कोई भी स्तरीय शिक्षा देने वाला स्कूल न होने के कारण वहाँ एक अच्छा प्राइमरी स्कूल खुलवाया और उसे कर्नाटक सरकार से मान्यता भी दिलवाई। बच्चों के लिए शिक्षा अत्यंत आवश्यक है। शिक्षित नागरिक ही अपना तथा अपने समाज एवं देश का विकास कर सकते हैं। समाज में व्याप्त अधिकांश बुराइयों की जड़ निर्धनता या गरीबी होती है और गरीबी की जड़ अशिक्षा है। यदि बच्चों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाए, तो समाज एवं देश का कभी भी कल्याण नहीं हो सकता है और कभी विकास भी नहीं हो सकता है। हमें बच्चों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए वैयक्तिक एवं सामाजिक दोनों स्तरों पर क्रियाशील होना चाहिए। हर शिक्षित व्यक्ति अपने आस-पास के निर्धन बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान कर सकता है। उन्हें पढ़ने के आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए तथा उनके भोजन की व्यवस्था करनी भी आवश्यक है। हर व्यक्ति को इसमें यथासंभव अपना योगदान देना चाहिए।
- लेखिका और उसकी बहनें हीनभावना का शिकार इसलिए नहीं हो पाईं क्योंकि लेखिका का जन्म उसकी परदादी द्वारा माँगी गई मन्नत (दुआ) के फलस्वरूप हुआ था। उसका भरपूर आदर-सत्कार हुआ। लेखिका की नानी देशभक्त तथा स्वाभिमानी महिला थीं। उनके मन में आजादी के प्रति गहरा लगाव था। इसी कारण लेखिका की माँ की शादी होनहार स्वतंत्रता सेनानी से हो सकी। इससे आजादीप्रियता का यह गुण उन्हें विरासत में मिल गया। इसके अलावा लेखिका तथा उसकी बहनों को सशक्त पारिवारिक संस्कार मिले, जिससे उन्हें हीनभावना छू भी न सका।
- जीवन में उन लोगों को श्रद्धाभाव से देखा जाता है जो- i. अपने स्वार्थ तक ही सीमित न रहकर दूसरों के बारे में भी सोचते हैं। ii. जो दूसरों की भलाई के लिए अपना धन, समय, श्रम आदि लगाने से भी नहीं घबराते हैं। iii. जो घर-परिवार के अलावा समाज के अन्य लोगों को भी उचित राय देते रहते हैं। लेखिका की माँ ऐसा ही किया करती थी। iv. जो दूसरी की गोपनीय बातों को सार्वजनिक नहीं करते हैं तथा उसकी गोपनीयता बनाए रखते हैं। खुद लेखिका की माँ इसका उदाहरण थीं।