सुमित्रानंदन पंत
Notes, Gram Shri Poem, and Study Material
📑 Table of Contents
✍️ About Sumitranandan Pant
सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कौसानी गाँव में सन् 1900 में हुआ। उनकी शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में हुई। आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया। वे छायावादी कविता के प्रमुख स्तंभ थे। उनका काव्य-क्षितिज 1916 से 1977 तक फैला। सन् 1977 में उनका देहावसान हुआ।
पंत जी छायावाद, प्रगतिवाद एवं अरविंद दर्शन से प्रभावित थे। उनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं: वीणा, ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, पल्लव, युगांत, स्वर्ण किरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा। उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पंत की कविता में प्रकृति और मनुष्य के अंतरंग संबंध दिखाई देते हैं। उनकी भाषा सरल, सुंदर और भावपूर्ण है। उन्हें ‘शब्द शिल्पी कवि’ भी कहा गया।
📖 Gram Shri (Poem)
फैली खेतों में दूर तलक, मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें, चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे हरे तन पर, हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ, नभ का चिर निर्मल नील फलक!
रोमांचित सी लगती वसुधा, आई जौ, गेहूं में बाली,
अरहर सनई की सोने की, किंकिनियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध, फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही, नीलम की कलि, तीसी नीली!
रंग रंग के फूलों में रिलमिल, हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकें, छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग रंग की तितली, रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हैं फूल स्वयं, उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर!
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से, लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे बेर झोली, फूले आड़ू, नीबू, दाड़िम, आलू, गोभी, बैंगन, मूली!
पीले मीठे अमरूदों में, अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर, आँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया, लौकी और सेम फलीं, फैलीं,
मखमली टमाटर हुए लाल, मिर्चों की बड़ी हरी थैली!
बालू के साँपों से अंकित, गंगा की सतरंगी रेती,
सुंदर लगती सरपत छाई, तट पर तरबूजों की खेती!
अंगुली की कंघी से बगुले, कलंगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर, मगरौठी रहती सोई!
हँसमुख हरियाली हिम-आतप, सुख से अलसाए से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की, तारक स्वप्नों में से खोए-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम, जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरूपम हिमांत में स्निग्ध शांत, निज शोभा से हरता जन मन!
📌 Question-Answers
Q1. कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा?
👉 गाँव की हरियाली, फल-फूलों और शांत वातावरण लोगों के मन को मोहित कर देता है।
Q2. कविता में किस मौसम का वर्णन है?
👉 बसंत और शीत ऋतु (हिमांत), खेतों में जौ और गेहूँ की बालियाँ, सरसों के फूल, और सुबह की धूप (हिम-आतप)।
Q3. गाँव को ‘मरकत डिब्बे सा खुला’ क्यों कहा?
👉 गाँव की हरियाली मरकत रत्न जैसी सुंदर और चमकदार है, और आसमान ऊपर डिब्बे की तरह है।
Q4. अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं?
👉 सोने की चमकदार ‘किंकिनियों’ की तरह, बहुत शोभाशाली।
Q5. ‘बालू के साँपों से अंकित, गंगा की सतरंगी रेती’ का भाव क्या है?
👉 गंगा की रेत पर टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें, दूर से रंग-बिरंगे साँप जैसी दिखाई देती हैं।
Q6. ‘हँसमुख हरियाली हिम-आतप, सुख से अलसाए से सोए’ का भाव क्या है?
👉 सर्दी की धूप में हरियाली शांत और आनंदित लगती है, जैसे आलस्य में सो रही हो।
📚 Vocabulary
- सनई: पौधा जिसकी छाल से रस्सी बनाई जाती है
- किंकिनि: करधनी
- वृंत: डंठल
- मुकुलित: अधखिला
- आँवली: छोटा आँवला
- सरपत: घास-पात, तिनके
- सुरखाब: चक्रवाक पक्षी
- हिम-आतप: सर्दी की धूप
- मरकत: पन्ना रत्न
- हरना: आकर्षित करना
🌟 Literary Devices & Poetic Beauty
- रूपक और अनुप्रास: ‘तिनकों के हरे हरे तन पर, हिल हरित रुधिर है रहा झलक’
- मानवीकरण: ‘हँसमुख हरियाली हिम-आतप, सुख से अलसाए से सोए’
- चित्रण शैली: गाँव की प्राकृतिक सुंदरता और फसलों की समृद्धि का विस्तार से वर्णन
✨ Quick Revision Points
- Poet: सुमित्रानंदन पंत
- Born: 1900, Died: 1977
- Major Works: वीणा, ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, पल्लव, युगांत, स्वर्ण किरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा
- Key Themes: प्रकृति और मनुष्य का अंतरंग संबंध, ग्राम्य सौंदर्य, छायावादी कविता
- Language: सरल, भावपूर्ण, कोमल शब्द चयन